Writer: Dr. Vimal Pankaj Katoch, BAMS, PG in Clinical Psychology, AMO, NHM HP.
हिमाचल प्रदेश उत्तरी भारत का पहाड़ी राज्य है , जितनी विशिष्ट इसकी भौगोलिक स्थितियां एवं परिस्थितियां हैं उतना ही मनोहर रुचिकर इसका इतिहास भी है।
समय के साथ साथ हिमाचल प्रदेश में कई जातियां, जनजातियां, समूह स्थापित हुए और उनकी सभ्यता तथा नियम हिमाचल का इतिहास निर्मित करते चले गए। उनके तौर तरीके आने वाली मानव जाति के लिए विरासत बन गए।
समय की गति के साथ जनसँख्या वर्धन होने पर आदि मानव 3000 ई पू में मध्य एशिया से अन्य सुरक्षित स्थानों, जहाँ जीवन निर्वाह हेतु भरपूर संसाधन कम प्रतिस्पर्धा के साथ उपलब्ध हों, की ओर पलायन कर गए । सिंधु घाटी से वो लोग तीन समूहों में तीन अलग अलग दिशाओं में चले गए । उनमे से एक समूह पछिम की ओर बढ़ता हुआ पश्चिमी यूरोप तक जा पहुंचा और वहीँ स्थापित हुए । दूसरा समूह दक्षिण की ओर बढ़ते हुए ईरान तक जा पहुंचे और वहीँ स्थापित हो गए जबकि उनमे से कुछ लोग पूर्व दिशा में बढ़ते हुए हिन्दुकुश पार कर के 2000 ई पू में सिंधु घाटी तक जा पहुंचे और सप्त सिंधु (सात नदियों की धरा ) में स्थापित हुए । तीसरे समूह के लोग दक्षिण पूर्वी दिशा में बढ़ गए । वे पामीर लांघ कर काशगिर पहुंचे और कश्मीर में प्रवेश कर गए । वहां से वे लोग पुरातन निवासियों पर आधिपत्य स्थापित करते हुए कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, कुमाऊँ, गढ़वाल और नेपाल में बस्तियां बसाते हुए “खश” जनजाति के रूप में स्थापित हुए।
धीरे धीरे इन समूहों के नेता या राजा का चयन किया जाने लगा, जो प्राय समूह में सबसे हष्ट पुष्ट और जवान पुरुष को बनाया जाता था। राजा का कर्त्तव्य समूह में अनुशासन कायम रखना, न्याय व्यवस्था रखना और बाहरी आतंक और घुसपैठ से समूह की सुरक्षा करना होता था। प्राय राजा की मृत्यु के बाद उसके वंश से ही राजा चुन लिया जाता था।
समय के साथ मैदानी इलाकों और पहाड़ी इलाकों में क्रम विकास के साथ विकासत्मक परिवर्तन हुए। राजा और उनके क्षेत्र समृद्ध होते गए। राजाओं द्वारा अपनी सीमाओं का भी निर्धारण किया जाने लगा तथा सेना गठन के साथ सीमा सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाने लगी । मैदानी इलाकों के राजा पहाड़ी क्षेत्रों की सुंदरता के वशीभूत कई कई बार आक्रमण कर के अपने राज्य विस्तार को पहाड़ी क्षेत्रों में ले जाने के प्रयास करते थे। उन प्रयासों में कुछ सफल हुए कुछ असफल।
कालांतर में हिमाचल प्रदेश पर भी औदुम्बर, कुणिंद, मौर्य, गुप्त, राजपूत का साम्राज्य रहा। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में काँगड़ा, सुकेत, कुलूत, हिन्दूर, केहलूर के उद्गम एवं स्थापन बारे में लिखित और मौखिक विवरण विस्तार से प्राप्त हो जाता है । हिमाचल प्रदेश में सतलुज और यमुना नदी के बीच 800 ई से 1200 ई के मध्य 12 ठकुराइयों और 18 ठकुराइयों की स्थापना एवं उद्गम हुआ। जिनके विलय से आज के जिला शिमला, सिरमौर, सोलन, किन्नौर बने। 12 ठकुराइयाँ;
- क्योंथल
- कुनिहार
- महलोग
- बेजा
- बघाट
- भज्जी
- कोटी
- भरोली
- कुठार
- धामी
- मांगल
- भागल
- क्योंथल की स्थापना गिरी सेन द्वारा की गयी।
- भागल और बघाट की स्थापना 2 पंवर राजपूत भाइयों क्रमशः अजयदेव और विजयदेव द्वारा की गयी।
- भज्जी और कोटी की स्थापना 2 भाइयों क्रमशः चारु और चाँद ने की।
- धामी की स्थापना राजा पृथ्वी राज चौहान के वंशज गोविन्द पाल द्वारा की गयी।
- महलोग की स्थापना हरी चंद द्वारा की गयी।
- कुठार की स्थापना सूरत चंद द्वारा की गयी।
- कुनिहार की स्थापना भोज देव द्वारा की गयी।
- मांगल की स्थापना मारवाड़ के अत्री राजपूत मंगल सिंह द्वारा की गयी।
- बेजा तथा भरोली की स्थापना मैदानी इलाकों से शरणार्थी आये हुए राजपूतों द्वारा की गयी।
18 ठकुराइयाँ सतलुज नदी के आस पास स्थापित हुई थी।
- जुब्बल
- सरी
- रवीनगढ़
- बलसन
- कुम्हारसेन
- खनेटी
- देलथ
- करंगला
- कोटगढ़
- रतेश
- घुंड
- मधान
- ठियोग
- दरकोटी
- थरोच
- धड़ी
- सांगरी
- डोडरा क्वार
- जुब्बल, सरी और रवीनगढ़ के संस्थापक 3 भाई क्रमशः करण चंद, मूल चंद और दुनी चंद थे।
- बलसन के संस्थापक अलक सिंह थे।
- रतेश के संस्थापक राय सिंह थे।
- घुंड, मधान और ठियोग के संस्थापक 3 भाई क्रमशः जँजीआं सिंह, भूप सिंह और जैस सिंह थे।
- कुम्हारसेन, खनेटी, देलथ, करांगला, और कोटगढ़ के संस्थापक क्रमशः कीरत चंद, सबीर चंद, पृथी चंद, संसार चंद और अहिमल सिंह थे।
- दरकोटी के संस्थापक दुर्गा सिंह थे।
- थरोच के संस्थापक किशन सिंह थे।
- धड़ी के संस्थापक केहर सिंह थे।
- सांगरी के संस्थापक मान सिंह थे।
- डोडरा क्वार के संस्थापक सुभांश प्रकाश थे।
इन 12 और 18 ठकुराइयों की स्थापना 800 ई से 1200 के मधय में हुई। इन् पहाड़ी राज्यों का इतिहास ज्यादातर संघर्ष से भरा हुआ रहा है। शक्तिशाली राजा आस पास के छोटे राज्यों को अपने राज्य में मिला लिया करते थे। परन्तु वो राज्य अनुकूल परिस्थितियों के आने पर पुनः स्वतंत्र हो जाया करते थे। हालाँकि इन् लड़ाईयों और संघर्षों से कोई खास राजनितिक बदलाव नहीं आते थे। पहाड़ी राजा एक दुसरे के अधिकारों का ध्यान रखने वाले थे। सामान्यतः पहाड़ी राजाओं में कोई नस्लीय, धार्मिकभेद नहीं थे और वो आपस में शादियों के साथ रिश्तेदारी में भी बन्ध जाया करते थे। सतलुज और यमुना नदी के मध्य स्थित इन् 12 और 18 ठकुराइयों में जनजीवन और राजनितिक घटनाक्रम 1300 ई में तुगलगी और 1500 ई में मुग़लों के पदार्पण तक सामान्य, सौहर्द्पूर्ण और विकासात्मक रहा था।