रामपुर बुशहर आंदोलन (Rampur Bushahr Movement)
1906 में बुशहर में (कर्मचारियों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन) दुजम (DUJJAM) शुरू किया गया । पं. पदम देव ने रीत (महिलाओं की खरीद फरोख्त) के विरुद्ध आवाज उठाई, साथ ही छुआछूत व् बाल विवाह का भी विरोध किया ।
कोटगढ़ में सत्यानन्द स्टोक्स ने बेगार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया । सन 1939 में ‘हिमालयन रियासती प्रजा मंडल‘ की स्थापना की गयी । इसके संस्थापक सर्वश्री चिरंजी लाल वर्मा, भागमल सौठा, पं. पदम देव, गोविन्द सिंह, ज्ञान चाँद टोटु, सूरत प्रकाश, देवी दस मुसाफिर, भास्कर नन्द, मनसा राम चौहान, हीरा सिंह पाल तथा सीता राम आदि थे ।
अपने अधिकारों को व्यापक रूप देने के लिए इन्होने “भाई दो न पाई” (BHAI DO NA PAI) आंदोलन शुरू किया, जो बुशहर व् पहाड़ी रियासतों के लिए क्रांति की मिशाल बनी । एक तरह से यह सविनय अवज्ञा आंदोलन का विस्तार था । इस आंदोलन में प्रजामण्डल के कार्यकर्ताओं को जेल का मुँह देखना पड़ा ।
आगे चल कर इन्ही नेताओं ने सुधार सम्मलेन, सेवक मंडल दिल्ली, बुशहर प्रेम प्रचारणी सभा का गठन किया । कई प्रकार की बेगार प्रथा को समाप्त किया गया । सत्य देव के समूह (बुशहर प्रजा मंडल) ने मार्च 1947 को सत्याग्रह शुरू किया । ठाकुर सेन नेगी ने भी इसमें बढ़ चढ़ कर भाग लिया । कम वेतन भोगी कर्मचारियों ने ‘बुशहर राज्य कर्मचारी संघ’ की स्थापना की । इस प्रकार बुशहर प्रजामण्डल ने अंग्रेजी सरकार की नीतियों का डटकर विरोध किया था ।
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