लेखक- प्रत्यूष शर्मा, हमीरपुर
सहायक प्रबंधक , इंडियन ओवरसीज बैंक
ईमेल- [email protected]
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में वन आरंभ से ही मानव विकास के केंद्र में रहे हैं और इसीलिये वनों के बिना मानवीय जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हालाँकि बीते कुछ वर्षों से जिस प्रकार बिना सोचे समझे वनों की कटाई की जा रही है उसे देखते हुए इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि जल्द ही हमें इसके भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
28 नवंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रतिवर्ष 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य वन संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है | 2012 के बाद से, हर साल वार्षिक आयोजन में वृक्षारोपण अभियान के रूप में वनों की कमी को रोकने व जागरूकता पैदा करने के लिए एक विषय या थीम निर्धारित की जाती है। इस वर्ष यानि 2020 में इस दिवस का विषय “वन और जैव विविधता” था |
जैव विविधता का अर्थ पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवों की विविधता से है। अर्थात् किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों एवं वनस्पतियों की संख्या एवं प्रकारों को जैव विविधता माना जाता है।
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन एक संगठन ” भारतीय वन सर्वेक्षण” द्वारा 16वीं “भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2019” जारी की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में देश में वनों एवं वृक्षों से आच्छादित कुल क्षेत्रफल लगभग 8,07,276 वर्ग किमी. है, जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का वनावरण क्षेत्र लगभग 7,12, 249 वर्ग किमी. है (21.67 प्रतिशत)। जबकि राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अनुसार यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग एक-तिहाई होना अनिवार्य है। यह दर्शाता है कि हम वर्ष 1988 में निर्मित राष्ट्रीय वन नीति के अनुरूप कार्य करने में असफल रहे हैं।
भारत के पहाड़ी ज़िलों में कुल वनावरण क्षेत्र 2,84,006 वर्ग किमी. है जो कि इन ज़िलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 40.30 प्रतिशत है।सर्वे में एक हैक्टेयर से बड़े ऐसे सभी क्षेत्रों को जंगल के रूप में दर्ज किया गया, जहां 10 प्रतिशत से अधिक जमीन पर वृक्ष आवरण है। हमारे वातावरण में जहरीली गैसों की मात्रा लगातार बढ़ रही है, इसकी वजह से प्रदूषण का स्तर बढ़ रही है और लोग कई खतरनाक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में अगर हम ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाते हैं, तो कुछ हद तक पर्यावरण की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है।
हिमाचल में हरित आवरण में वृद्धि हुई है। वर्ष 2017 के मुकाबले वर्ष 2019 में इसमें 334 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अधिक घनत्व और मध्यम घनत्व वाले जंगलों में बढ़ोतरी हुई है। 2017 में प्रदेश का हरित आवरण 15100 वर्ग किलोमीटर था जो अब 15434 वर्ग किलोमीटर हो गया है। यह कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 27.72 फीसद है। हिमाचल सरकार ने वर्ष 2024 तक हरित आवरण को 33 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है |
हिमाचल प्रदेश को प्रकृति ने अनुपम वनस्पति से नवाजा है और यहां अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियों का भंडार मौजूद है, जो विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाने तथा अन्य उत्पादों के निर्माण के लिए प्रयुक्त होती हैं। सी.एस.आई.आर- हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर , पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के सर्वेक्षण, संग्रहण और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों की प्रजातियों के डेटाबेस के निर्माण पर कार्य कर रहा है। संस्थान ने अब तक हिमाचल प्रदेश के 50% के क्षेत्र में यह कार्य कर लिया है। हिमफ्लोरिस(हिमाचल प्रदेश फ्लोरा इन्फार्मेशन सिस्टम), हिम वन संकेत, हिम पादप संकलन आदि संस्थान द्वारा विकसित महत्वपूर्ण डेटाबेस से कुछ हैं। विभिन्न प्रयोजनों के लिए स्थानीय लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले पौधों की पहचान करने के हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वेक्षण भी किए जाते है, इकट्ठी की गई जानकारी को डिजिटल लाइब्रेरी परियोजना के अन्तर्गत सीएसआईआर को प्रस्तुत किया जाता है।
हिमाचल सरकार इस क्षेत्र में बहुत सराहनीय काम कर रही है, कई नई योजनाएँ शुरू हुई हैं, जैसे “सामुदायिक वन संवर्धन योजना” जिसका उद्देश्य वृक्षारोपण के माध्यम से वनों के संरक्षण और विकास में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना है | एक और नई योजना “विद्यार्थी वन मित्र योजना” चलाई गई है जिसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को वनों के महत्व और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका के बारे में छात्रों को संवेदनशील बनाना है तथा छात्रों में वनों के प्रति लगाव की भावना पैदा करना है वर्ष 2019 के दौरान इस योजना के तहत 125 लाख का बजट प्रावधान रखा गया जिसके अंतर्गत 131.5 हेक्टेयर भूमि में पौधारोपण किया जाएगा |
एक अन्य योजना वन समृद्धि जन समृद्धि योजना हिमाचल सरकार द्वारा चलाई गई है जिसका उद्देश्य स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से राज्य में उपलब्ध गैर कास्ट वन उत्पाद संसाधनों को सुदृढ़ करना और अच्छी तकनीक अपनाकर अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करना है|
वर्ष 2019 से एक नई योजना “एक बूटा बेटी के नाम” चलाया गई है चलाई गई है जिसके अंतर्गत राज्य में कहीं भी बालिका शिशु के जन्म पर वन विभाग उसके माता-पिता को चयनित वानिकी प्रजाति के पांच पौधे परिवार को भेंट करेगा पौधारोपण लड़की के माता-पिता द्वारा उनकी निजी भूमि या वन भूमि में मानसून अथवा शीत ऋतु में किया जाएगा |
हिमाचल प्रदेश इको सिस्टम क्लाइमेट प्रूफिंग परियोजना केएफडब्ल्यू बैंक जर्मनी के सहयोग से 7 वर्षों की अवधि के लिए वर्ष 2015 -16 से प्रदेश के चंबा और कांगड़ा जिले में कार्यान्वित किया जा रही है | जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी के साथ 800 करोड रुपए की एक परियोजना हिमाचल प्रदेश वन इको सिस्टम प्रबंधन व आजीविका सुधार परियोजना 8 वर्षों की अवधि के लिए वर्ष 2018-19 से शुरू की गई है |
पहले हमारे बुजुर्ग पेड़-पौधे लगाना धर्म समझते थे और इनका सरंक्षण भी करते थे। उन्हें बहुत सी प्रजातियों के महत्व का भी पता था, लेकिन आज यह स्थिति बिलकुल बदल चुकी है। बहुत से क्षेत्रों में कुछ धार्मिक मान्यताओं के चलते भी पेड़-पौधों को नहीं काटा जाता है। हिमालयी क्षेत्रों में वनस्पति की बहुमूल्य संपदा है और इसके संरक्षण की आवश्यकता है। हम सब भावी पीढि़यों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए जैव वनस्पतियों का संरक्षण करें और अधिक से अधिक पेड़-पौधों की प्रजातियों को तैयार करें। बच्चों व युवाओं को वनों, जड़ी-बूटियों व हर्बल पौधों की पहचान व जानकारी प्रदान करें ताकि वे बहुमूल्य संपदा का महत्त्व समझ सके और भविष्य में इनका संरक्षण करने में आगे आएं ।
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