लेखक- प्रत्यूष शर्मा, सहायक प्रबंधक, इंडियन ओवरसीज बैंक
प्रत्येक वर्ष 24 मार्च को विश्व क्षय रोग /टी.बी दिवस मनाया जाता है । टी.बी जैसी गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से यह दिवस मनाया जाता है। तो आप सोच रहे होंगे कि 24 मार्च को ही क्यों ये दिवस मनाया जाता है, दरसअल 24 मार्च 1882 को महान वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने टीबी के जीवाणु की खोज करने की घोषणा की थी, जिससे इस बीमारी की इलाज ढूंढ़ने में मदद मिली । इसलिए 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है।
क्षय रोग मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है, जो हवा के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है और मुख्यतः फेफड़ों को प्रभावित करता है। जीवाणु से संक्रमित व्यक्ति के टीबी से ग्रसित होने की संभावना 5-15 प्रतिशत ही होती है। विश्व की एक चौथाई जनसंख्या लेटेंट टीबी से ग्रस्त है। लेटेंट टीबी का अर्थ यह कि लोग टीबी के जीवाणु से संक्रमित तो हो जाते हैं परन्तु उन्हें यह रोग नहीं होता है और वे इसका संचरण अन्य व्यक्तियों तक नहीं कर सकते हैं। हालाँकि, एचआईवी, कुपोषण और मधुमेह से पीड़ित और तम्बाकू का उपयोग करने वाले लोगों को इस रोग से ग्रसित होने का खतरा सबसे अधिक होता है। विश्व भर में टीबी के 8% मामले धूम्रपान के कारण दर्ज़ किये जाते हैं और इससे होने वाली 95% से अधिक मौतें विकासशील देशों में होती हैं। क्षय रोग विश्व भर में होने वाली मौतों के प्रमुख 10 कारणों में से एक है।
यद्यपि क्षयरोग एक संक्रामक रोग है और यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल सकता है परन्तु फिर भी इससे बचाव अथवा इसकी पूर्ण रोकथाम संभव है। अतः इस दिशा में पहल करनी होगी। भारत की चिकित्सकीय क्षमता के कारण इस रोग से होने वाली मौतों की संख्या में कमी देखी गई है परन्तु अभी भी इस दिशा में प्रयास किये जाने आवश्यक हैं। अपनाए गए सतत् विकास लक्ष्यों का एक उद्देश्य वर्ष 2030 तक क्षय रोग नामक संक्रमण को समाप्त करना है | भारत सरकार ने वर्ष 2035 तक 90-90-90 लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है। इसका अर्थ है कि क्षय रोग के कारण होने वाली घटनाओं, मृत्यु दर और स्वास्थ्य व्यय में 90% कमी लाई जाएगी।
इस रोग से निपटने के लिये देश में वर्ष 1962 में राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था, लेकिन इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली। अतः कम-से-कम 85 प्रतिशत रोगियों के इलाज और 70 प्रतिशत रोगियों की पहचान करने के उद्देश्य से संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम को डॉट्स प्रणाली के साथ 26 मार्च, 1997 को शुरू किया गया। यह कार्यक्रम देश के लिये बहुत अच्छा रहा, इसमें इलाज का औसत 85 प्रतिशत रहा और मृत्युदर घटकर पाँच प्रतिशत से भी कम हो गई | इस कार्यक्रम के तहत प्रतिमाह 1 लाख से भी अधिक रोगियों का इलाज कर, अब तक करीब 15.75 लाख से अधिक लोगों को इस रोग से बचाया जा सका है।
विभिन्न देशों ने टीबी की समाप्ति के लिये विचार-विमर्श के लिये वर्ष 2017 में मास्को विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन और वर्ष 2018 में टीबी पर हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली उच्च स्तरीय बैठक में भाग लिया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट-2019 के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में तपेदिक रोगियों की संख्या 27.4 लाख थी जो वर्ष 2018 में घटकर 26.9 लाख हो गई अर्थात पिछले वर्ष तपेदिक के रोगियों की संख्या में 50000 की कमी आई है | स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ” इंडिया टी. बी. रिपोर्ट“ के अनुसार भारत ऑनलाइन अधिसूचना प्रणाली ‘निक्षय‘ के माध्यम से सभी तपेदिक मामलों को कवर करने के निकट है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निक्षय पोषण योजना के अंतर्गत तपेदिक से प्रभावित रोगियों को प्रत्यक्ष हस्तांतरण योजना के अंतर्गत पोषक आहार के लिये आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है।
हिमाचल सरकार भी इस क्षेत्र में सराहनीय काम कर रहा है | हिमाचल प्रदेश सरकार राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम को मजबूत करने के लिए क्षय रोग निवारण योजना लागू करने जा रही है | पिछले वर्ष क्षयरोग के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए राज्य को पूरे देश में प्रथम पुरस्कार दिया गया था | हाल ही में राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में यह प्रावधान किया गया है कि क्षय रोग निवारण योजना के अंतर्गत दवा प्रतिरोधी तपेदिक के लिए जांच करने वाली सुविधाओं को बढ़ाया जाएगा और लाइन प्रोब एस्से सुविधा इंटरमीडिएट संदर्भ प्रयोगशाला को धर्मपुर के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज टांडा में भी शुरू किया जाएगा जो एक बेहतरीन कदम है इसके अतिरिक्त दबा प्रतिरोधी क्षय रोगियों के पोषण बढ़ाने के लिए 1500 प्रति माह की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की गई है जो इस एक सराहनीय कदम है।
हाल ही में अमेरिका द्वारा एंटी-ट्यूबरकुलोसिस ड्रग प्रीटोमेनीड को अनुमोदित किया गया। यह दवा प्रतिरोधी टीबी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिये एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्ष 2017 में दुनिया भर में अनुमानित 4.5 लाख लोग (भारत में लगभग 37,500 लोग) प्रतिरोधी टीबी से ग्रसित थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश को 2025 तक टीबी रोग मुक्त करने की दिशा में कदम उठाए हैं। हिमाचल सरकार भी वर्ष 2021 अंत तक राज्य को टीबी रोग मुक्त करने का प्रयास कर रही है।
हिमाचल देश का पहला ऐसा राज्य हैं, जहां सभी जिला केंद्रों के अस्पतालों के अलावा कुछ उपमंडल स्तर के अस्पतालों में भी संभावित टीबी रोगियों के बलगम की जांच होती है। आने वाले दिनों में टीबी रोग की जांच के अभियान को और गति दी जाएगी। इसके अलावा जागरूकता कार्यक्रमों में भी तेजी जाने तक काम हो रहा है।
हिमाचल में स्वास्थ्य विभाग ने टीबी मुक्त हिमाचल अभियान नाम से एक मोबाइल एप लांच किया है। पंचायत स्तर पर फोरम गठित की जाएगी। पहले पंचायत, फिर खंड और जिला को टीबी रोग मुक्त किया जाएगा। फिर से घर-घर जाकर लोगों की जांच के लिए विशेष अभियान भी चलाए जाएंगे। इसके अलावा जो टीबी रोगी ठीक हुए हैं, उन्हें भी लोगों को जागरूक करने के मुहिम में जोड़ा जाएगा ।
प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के पास टीबी रोग के लगभग 17 हजार नए मामले सामने आते हैं। कांगड़ा में सबसे ज्यादा मामले सामने आये हैं। पिछले कुछ अरसे से हिमाचल स्वास्थ्य विभाग टीबी नियंत्रण के लिए भरसक प्रयास कर रहा है।
हिमाचल प्रदेश को टीबी मुक्त करने के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग ने जागरूकता अभियान चलाया है. 2021 तक प्रदेश को टीबी मुक्त करने के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग ने टीमें गठित की है, जो घर घर जाकर लोगों की जांच कर रहा है
इसके तहत जिनमें टीबी होने का ज्यादा खतरा है, उनके परिवार के सदस्यों, घरों, हॉस्टलों, वृद्धाश्रमों, बालआश्रमों, झुग्गी झोपडिय़ों में रहने वाले मजदूरों, शिक्षण संस्थानों, सड़क पर रह रहे बेघर लोगों और मजदूरी करने वाले शामिल हैं | टीबी के लक्षण दिखने पर उसे काबू करने के लिए दवाइयां भी दी की जाएगी।
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