लेखक - प्रत्यूष शर्मा, हमीरपुर
प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। वैश्विक संकट बन चुके वायु प्रदुषण और पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में 1972 में हुई चर्चा के दौरान हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने की बात कही गई। दो वर्ष बाद 5 जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया जिसके बाद से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस आयोजन का उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा के लिये जागरूकता फैलाना है। 2018 में विश्व पर्यावरण दिवस समारोहों की मेज़बानी भारत ने की और इसका थीम ‘प्लास्टिक प्रदूषण’ था। इस वर्ष अर्थात् 2020 में इसकी मेज़बानी कोलंबिया कर रहा है और इस का थीम या विषय ‘जैव विविधता’ है। इसका आयोजन प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा किया जाता है।
आज पर्यावरण दिवस है तो हमें पर्यावरण की बड़ी चिंता होगी, जगह-जगह ऑनलाइन सेमिनार होंगे, ऑनलाइन सम्मेलन होंगे और यह विशेष दिवस एक दिन का उत्सव मात्र बनकर रह जाएगा। क्या साल के सिर्फ एक दिन हम इस मुद्दे पर बात करना, चर्चा करना और एक-दूसरे को जागरूक करना जरूरी समझते हैं? बाकी के 364 दिन हमें इस विषय पर बात करने तक की जरूरत नहीं महसूस होती?
बचपन से सुनते आये हैं कि सभी को रोटी, कपड़ा और मकान की जरुरत होती है। ये चीजें जरुरी भी है। लेकिन इससे भी ज्यादा जरुरी चीजें है जिनके बिना हम दुनिया में केवल और केवल कुछ ही मिनट रह पाएंगे। जो चीजें हमें प्रकृति ने मुक्त में दी है। प्रकृति हमने इन सभी चीजों के बदले में रुपये पैसे भी नहीं लेती है लेकिन हम बेखबर इन बातों को समझने के लिए तैयार ही नहीं है। मुझे लगता है कि आज के समय सबसे पहली चीज जीने के लिए जरुरी है वो है हवा। इसके बाद जरुरी है जल। इसके बाद भोजन आता है। क्योंकि ये चीजें नहीं मिलेगी तो हम ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाएंगे। आइये जरा सोचे कि अगर ये नहीं होंगे तो क्या होगा?
सबसे पहले जरुरत होती है हमें हवा की। हर एक प्राणी सांस लेता है। सबके पास घर हो या न हो, कोई गारंटी नहीं है लेकिन वो सांस जरूर लेगा। लेकिन आज प्रदूषण इतना फ़ैल चुका है कि हमें शुद्ध हवा नहीं मिल पा रही है। जिस कारण हम बीमार होते जा रहे हैं। वृक्ष ही ऑक्सीजन का एकमात्र साधन है। लेकिन आज के समय पेड़ कटते जा रहे हैं। आबादी बढ़ती जा रही है। गाड़ियां, बाइक, ट्रक, स्कूटर आदि बढ़ते जा रहे है। फैक्ट्री और उनसे निकलने वाला ज़हरीला धुंआ हम अपने फेफड़ों में अंदर ले जाते जा रहे हैं। जरा सोचिये कैसे हम जी सकते हैं? अगर पेड़ काटने बंद नहीं हुए तो एक दिन ऐसा आएगा कि कुछ सालों के बाद हम ऑक्सीजन सिलेंडर साथ लेकर घुमा करेंगे। इसलिए अब सचेत हो जाये। इस पर्यावरण दिवस पर एक काम तो जरूर कीजिये कि अधिक से अधिक पेड़ लगाइये। केंद्र सरकार ने ‘सेल्फी विद सैपलिंग’ अभियान भी शुरू किया है ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं।
हमें जीवन के लिए ऑक्सीजन चाहिए तो हमें पेड़ भी लगाना चाहिए। हमें पीने के लिए पानी चाहिए तो जल संरक्षण भी करना होगा। हमें अपने लिए घर बनाना है, तो रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को भी मकान निर्माण में जगह देनी होगी। जल संकट न हो, इसके लिए भूजल स्तर को बनाए रखना होगा। प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में सावधानी बरतनी होगी। तभी हम रोजमर्रा की जिंदगी में अपने छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पेरिस लक्ष्य पूरा करने के लिए हमें 2020 से 2030 के बीच हर साल कार्बन उत्सर्जन को 7.6% की दर से कम करना होगा । लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 460 लाख डॉलर प्रदूषण जनित रोगों पर खर्च होते हैं, जो विश्व की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 6.2% है। हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2018 में भारत को 180 देशों की सूची में 177वाँ स्थान दिया गया है। जबकि वर्ष 2016 के पर्यावरणीय प्रदर्शन सूचकांक में भारत 141वें स्थान पर था।
पिछले कुछ वर्षों से फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हुई है। दिल्ली के पड़ोसी राज्यों हरियाणा और पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद खेतों को साफ करने के लिये उनमें आग लगा दी जाती है, जिसके चलते इससे उत्पन्न होने वाला धुआँ दिल्ली की हवा को प्रदूषित कर देता है। यह हवा की गुणवत्ता, मिट्टी की उर्वरता और मानव स्वास्थ्य के लिये भी बेहद दुष्प्रभावी है। हमे अपने पर्यावरण को बचाने के लिए कई ऊपाय करने होंगे जैसे कि हमें वाहनों के उत्सर्जन मानकों को मज़बूत करना होगा। इलेक्ट्रिक वाहनों को मुख्यधारा में लाना होगा। निर्माण कार्यों के कारण उड़ने वाली धूल पर नियंत्रण करना होगा। अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ों से होने वाले उत्सर्जन में कमी करनी होगी। औद्योगिक प्रक्रिया से जुड़े उत्सर्जन मानकों को बेहतर बनाना होगा। घरेलू अपशिष्ट को जलाने पर सख्त पाबंदी को लागू करना होगा। अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में बढ़ोतरी करनी होगी । फसल अवशेषों का बेहतर प्रबंधन करना करना होगा। वन भूमि में आग लगने की घटनाओं पर रोक लगानी होगी। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना होगा। देश भर में प्लास्टिक के सामान का कम से कम प्रयोग करने और इसके कचरे के सही निष्पादन पर विशेष जोर दिया गया है। इस अभियान को सफल बनाने के लिए आम लोगों की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। अगर प्रत्येक घर पर ही कचरे की छंटाई करके प्लास्टिक को अलग कर दिया जाए तो एक बहुत बड़ी समस्या का समाधान अपने आप ही हो जाएगा। हालाँकि पर्यावरण की गुणवत्ता को रातोंरात बहाल करना संभव नहीं है पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में हम आगे-पीछे नहीं बल्कि आगे की ओर बढ़ते रहें।
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Very good Article……!
Thanks