बिलासपुर संघर्ष (Bilaspur Struggle):
1905 में भूमि कर बंदोबस्त के समय से ही लोग इसके विरुद्ध थे । बिलासपुर में भूमि कर अन्य ब्रिटिश अधीन जिलों जैसे होशियारपुर और काँगड़ा की अपेक्षा ज्यादा वसूला जा रहा था । 1930 में भूमि बंदोबस्त अभियान शुरू कर दिया गया । “भदरपुर प्रांगण” के लोगों ने गाँव में काम कर रहे सरकारी कर्मचारियों को लकड़ी देने से मना कर दिया । राज्य में अनुचित कर व कर्मचारियों के अत्याचार पूर्ण व्यवहार का खुल कर विरोध किया गया ।
9 जनवरी 1933 को राजा आनंद चंद गद्दी पर बैठा, जिसमे जनता को अधिकार मिलने की संभावना बढ़ी । राजा ने दमन और सुधार की दोहरी नीति अपनाई । कुछ शिक्षित लोगों ने सामाजिक और धार्मिक सुधार के उद्देश्य से “सेवा समिति” और “सनातन धर्म” सभा का गठन किया ।
दौलत राम संख्यान (Daulat Ram Sankhyan), नरोत्तम दास शास्त्री (Narottam Das Shastri), देवी राम उपाधयाय (Devi Ram Upadhaya) ने 1945 में उदयपुर अधिवेशन के बाद “बिलासपुर राज्य प्रजा मंडल” की स्थापना की । 21 दिसंबर 1946 को सत्याग्रह का श्रीगणेश किया गया । बिलासपुर के राजा ने “स्वाधीन केहलूर दल” नामक एक सेना का गठन किया जो की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रयतनशील थी । 1 जुलाई 1954 को बिलासपुर राज्य का विलय हिमाचल प्रदेश में कर दिया गया ।
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SWadheen kehloor dal was made to suppress all liberation activities , associated with INC , AISPC, BRPM.
source:- JAG MOHAN BALOKHRA PAGE 776