सूरजकुंड मेले में थीम स्टेट हिमाचल

By | February 20, 2020

हिमाचल प्रदेश राज्य हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम लिमिटेड राज्य के गरीब बुनकरों और कारीगरों के हितों की सहायता और प्रचार के उद्देश्य से वर्ष 1974 में अस्तित्व में आया। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की लड़ाई को दर्शाने वाला चंबा रूमाल जिसे चंबा के राजा गोपाल सिंह ने एक अंगे्रज को 19वीं शताब्दी में उपहार स्वरूप दिया था, अब उसे विक्टोरिया तथा एल्बर्ड म्यूजियम लंदन में रखा गया है। यह भी कहा जाता है कि 20वीं शताब्दी के आरंभ में राजा भूरि सिंह (1904-1919) ने ऐसे कढ़ाई किए हुए कपड़े तथा औजार मंगवाए और उन्हें 1907 तथा 1911 में लगे दरबारों में दिल्ली भेजा। वहां शायद इन रूमालों को पहली बार इतना सराहा गया कि इनका नाम ही चंबा रूमाल पड़ गया।

हरियाणा के सूरजकुंड में पहली से 16 फरवरी तक चले वाले अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में 23 वर्ष बाद हिमाचल प्रदेश को थीम स्टेट बनाने का मौका मिला है। हिमाचल के थीम स्टेट बनने से मेला घूमने आने वाले पर्यटकों को हिमाचल की लोक संस्कृति से रू-ब-रू होने का मौका मिलेगा। इस मेले में मकलोडगंज और मनाली के दृश्यों को जीवंत किया गया है। हिमाचल प्रदेश पहली बार 1996 में सूरजकुं ड का थीम स्टेट बना था।

अब 23 वर्षोें बाद 2020 में इसे दूसरी बार मौका मिल रहा है। यह हमारे लिए बहुत गौरव की बात है कि इस सूरजकुंड मेले के माध्यम से हमारी संस्कृति को दूसरे राज्यों के लोग भी जान सकेंगे। हिमाचल प्रदेश राज्य हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम लिमिटेड राज्य के गरीब बुनकरों और कारीगरों के हितों की सहायता और प्रचार के उद्देश्य से वर्ष 1947 में अस्तित्व में आया। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की लड़ाई को दर्शाने वाला चंबा रूमाल जिसे चंबा के राजा गोपाल सिंह ने एक अंगे्रज को 19वीं शताब्दी में उपहार स्वरूप दिया था, अब उसे विक्टोरिया तथा एल्बर्ड म्यूजियम लंदन में रखा गया है। यह भी कहा जाता है कि 20वीं शताब्दी के आरंभ में राजा भूरि सिंह (1904-1919) ने ऐसे कढ़ाई किए हुए कपड़े तथा औजार मंगवाए और उन्हें 1907 तथा 1911 में लगे दरबारों में दिल्ली भेजा। वहां शायद इन रूमालों को पहली बार इतना सराहा गया कि इनका नाम ही चंबा रूमाल पड़ गया।

31 अक्तूबर 2008 को यूनेस्को ने चंबा रूमाल को विश्व धरोहर घोषित किया था। हिमाचल हस्तशिल्प की बात करें तो कुल्लू शाल का नाम पहले नंबर पर आता है। प्रदेश में पांच प्रोडक्ट कुल्लू, किन्नौर की शॉल, कांगड़ा की चाय, पेंटिंग, चंबा के रूमाल की जीआई, टैंगिग की गई है। अभी हाल ही में हिमाचल के काला जीरा और चूली तेल को भी जीआई टैग प्रदान किया है। सूरजकुंड मेले में थीम स्टेट बनने से हिमाचल के नाटी, कथड़ी, घुघटी, बिडसु, दानव नृत्य, वाक्यांग, कायांग, बानाचंय पहाड़ी नृत्य देखने को मिलेंगे। साथ ही साथ हिमाचली धाम और 20 से अधिक खानपान का स्वाद भी ले सकते हैं। इससे हमारी संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। इस मेले में उज्बेकिस्तान को कंट्री पार्टनर बनाया गया है। यह राष्ट्र भी हस्तशिल्प के मामले में विश्व प्रसिद्ध है। हम हिमाचली भी अपने हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग को बढ़ाने के लिए उज्बेकिस्तान से नई-नई तकनीक सीख सकते हैं। हिमाचली टोपी जिसके अंतर्गत कुल्लवी टोपी, किन्नौरी टोपी आदि आते हैं, हिमाचल के हस्तशिल्प उद्योग का एक प्रसिद्ध प्रोडक्ट है।

हिमाचल सरकार ने हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। हिमाचल प्रदेश हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास सहकारी संघ समिति ‘हिमबुनकर’ के नाम से जानी जाती है। देश व प्रदेश में जगह-जगह पर हिमबुनकर के कई शोरूम खोले गए हैं। हाल ही में प्रसिद्ध ऑनलाइन शॉपिंग बेबसाइट अमेजॉन ने हिमबुनकर के साथ करार किया है। उसने एमओयू साइन किया है ताकि हिमबुनकर के उत्पाद अमेजॉन बेबसाइट पर बेचे जा सकें। यह हमारे प्रदेश की संस्कृति को देश-विदेश तक पहुंचाने में एक अहम कदम है।

भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय ने हथकरघा के उन्हीं उत्पादों को शामिल किया है, जो सरकार के तय मापदंडों पर खरे पाए जाते हैं। हिमबुनकर के अंतर्गत देश भर में 315 प्राथमिक बुनकर सहकारी सभाएं हैं। 1984 में गठित हिमबुनकर संघ देश में लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपए के स्वयं तैयार उत्पाद बिक्री करता है। वस्त्र मंत्रालय की ओर से हाल ही में लगभग दो करोड़ छह लाख रुपए की हथकरघा प्रशिक्षण संबंधी कलस्टर परियोजनाएं कुल्लू व मंडी जिलों के लिए स्वीकृत की गई हैं। हमें चाहिए कि हम अपने हिमाचल की संस्कृति को विश्व के हर कोने तक पहुंचाएं और हिमाचली हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग को और अधिक बेहतर बनाने में अपना योगदान दें।

लेखक- प्रत्यूष शर्मा,

सहायक प्रबंधक, इंडियन ओवरसीज बैंक

ईमेल- [email protected]

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