GS-2 ( governance and its related issues in HP)
Topic: 1. Cybercrime and drug menace – mechanism to detect and control it in Himachal Pradesh. (GS-2, UNIT-3)
2. Issues and Challenges. Programmes and policies for the welfare of differently-abled persons, women and children in Himachal Pradesh. (GS-2, UNIT-2)
3. Various policies framed by the Government of Himachal Pradesh for the socio-economic development of Scheduled Castes and Scheduled Tribes of the State. (GS-2, UNIT-3)
हाल ही में हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग द्वारा वार्षिक अपराधिक रिपोर्ट का प्रकाशन किया गया। रिपोर्ट के अनुसार सड़क हादसों के बाद हिमाचल में सबसे अधिक 1439 मामले एनडीपीएस एक्ट के तहत दर्ज किए गए। जो हिमाचल जैसे छोटे भू-क्षेत्र व कम जनसंख्या वाले राज्य में बढ़ते नशे के प्रचलन की ओर इशारा करते हैं। इसके अलावा महिलाओं के खिलाफ क्रूरता व दुष्कर्म के मामलों में भी पिछले साल की अपेक्षा बढ़ोतरी हुई है। जो राज्य में महिला सुरक्षा से संबंधित चिंताओं को उजागर करते हैं।
वहीं अनुसूचित जाति व जनजाति के खिलाफ भी अपराध पिछले साल की तुलना में बड़े हैं। जो राज्य में जातीय हिंसा और उच तबकों की निम्न तबकों के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता को दर्शाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार सड़क हादसों में जान गवाने वाले लोगों की संख्या 1109 दर्ज की गई है। जो राज्य में सड़क सुरक्षा और वाहन चालकों की कुशलता पर कई सवाल खड़े करता है।
राज्य में नशे का बढ़ता प्रचलन एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है। जिस युवा पीढ़ी पर देश और प्रदेश का भविष्य निर्भर है, एक रिपोर्ट के अनुसार उसी युवा पीढ़ी का 27% हिस्सा आज हिमाचल में नशे की गिरफ्त में है। पश्चिमी संस्कृति का बढ़ता प्रचलन, युवाओं में बढ़ता अवसाद, पारिवारिक दूरियां, पारंपरिक सांस्कृतिक मूल्यों में कमी, मित्र मंडलियों में नशे का संकेंद्रण, शिक्षा पद्धति में नैतिक मूल्यों की कमी, फिल्मों में नशे का बड़ता चित्रण आदि कुछ ऐसे कारण है जो युवा पीढ़ी को कई तरह के आधुनिक मादक द्रव्यों की तरफ धकेल रहे हैं।
नशे की समस्या को लेकर प्रदेश सरकार भी काफी गंभीर दिखती है। हाल ही में सरकार द्वारा 15 दिनों का विशेष नशा उन्मूलन अभियान चलाया गया था। इससे पहले राज्य सरकार द्वारा राज्य में 5 नशा मुक्ति केंद्रों की भी स्थापना की जा चुकी है और अन्य ऐसे ही केंद्र खोले जाने के लिए सरकार प्रयासरत है और विशेष जागरूकता अभियान स्कूल और कॉलेज स्तर पर भी सरकार द्वारा समय-समय पर चलाए जा रहे हैं।
इसके अलावा हिमाचल प्रदेश पुलिस भी राज्य में मादक द्रव्यों की खेप रुकने को लेकर काफी सजग है। इसके अंतर्गत बाहरी राज्यों से मादक द्रव्यों की आपूर्ति को रोकने के लिए राज्य सरकार ने अन्य उत्तरी राज्यों के साथ मिलकर एक, पंचकूला में सचिवालय की स्थापना की है, दूसरा, चंडीगढ़ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के साथ मिलकर एक टास्क फोर्स का गठन किया है। राज्य स्तर पर एक नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की स्थापना की गई है। राज्य में मादक द्रव्यों के व्यापार और इस्तेमाल से संबंधित अपराधों की जांच के लिए अधीक्षक नारकोटिक्स का पद राज्य सीआईडी के अधीन सृजित किया गया है। इसके अलावा राज्य में पुलिस बलों द्वारा 490 से अधिक बॉडी-वर्ण कैमरों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
मादक द्रव्यों का सेवन करके वाहन चालने के प्रचलन को देखकर चालान की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए इ-चालान की सुविधा भी सरकार द्वारा पुलिस को उपलब्ध करवाई गई है। इसके साथ-साथ हिमाचल पुलिस द्वारा ‘भांग उखाड़ो अभियान’ व ‘ड्रग फ्री हिमाचल’ ऐप की शुरुआत के साथ-साथ विशेष जागरूकता अभियान चलाए जाने पर बल दिया जा रहा है। क्योंकि नशा बढ़ते अपराध और पारिवारिक कलह और अव्यवस्था की स्थिति को बढ़ावा देने की धूरी के रूप में कार्य करता है। यदि हम राज्य में अपराधो को बढ़ावा देने वाले इस पहिए की धूरी को सुधार लेते हैं, तो निश्चित तौर पर प्रदेश खुशहाली और समृद्धि की ओर अग्रसर होगा।
दूसरी तरफ सड़क हादसों में हो रही मौतों को कम करने के लिए भी विशेष प्रयास किए जाने की जरूरत है।
हिमाचल में अक्सर सड़क हादसों को यह क्या कर टाल दिया जाता है कि हिमाचल की भौगोलिक स्थिति इसके लिए जिम्मेदार है। वहीं अगर हम पड़ोसी राज्य उत्तराखंड की बात करें जो भौगोलिक स्थिति में हिमाचल से कहीं अलग नहीं है और जिसकी जनसंख्या भी हिमाचल से दुगने से थोड़ी कम है, लेकिन हादसों की अगर बात करें तो वहां पर सड़क हादसों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या वर्ष 2018 में 627 थी और कुल सड़क हादसों की संख्या 1200 के करीब थी।
वहीं हिमाचल में 2018 में 3118 सड़क हादसे हुए और मरने वालों की संख्या 1000 से अधिक थी। इसके अलावा उत्तरी पूर्वी पहाड़ी राज्यों की स्थिति भी सड़क सुरक्षा में हिमाचल से बेहतर है। सरकार इन सब राज्यों से सबक लेकर कुछ विशेष मानक तय करके सड़क हादसों में मारे जाने वाले व्यक्तियों की संख्या में कमी कर सकती है।
राज्य में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध भी चिंता का विषय है। वर्ष 2018 में महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के 183 मामले थे, जो वर्ष 2019 में बढ़कर 229 हो गए। वहीं वर्ष 2018 में दुष्कर्म के 345 मामले वर्ष 2019 में बढ़कर 358 हो गए हैं। इसके अलावा राज्य में बहुत से ऐसे मामले हैं जिनकी रिपोर्टिंग नहीं होती है।अतः अपराधों की रिपोर्टिंग हो इस दिशा में भी विशेष प्रयास किए जाना चाहिए।
हालांकि राज्य सरकार द्वारा राज्य में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर शक्ति एप और गुड़िया हेल्पलाइन की शुरूआत की गई है। इनका इस्तेमाल करके महिलाएं बिना पुलिस थाने जाए अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है। लेकिन आज भी राज्य में महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा आधुनिक तकनीकों से लैस स्मार्ट फोन की सुविधा से अछूता है। राज्य में विशेष महिला थाने खोले गए हैं। स्कूल स्तर पर छात्राओं को पुलिस के माध्यम से आत्म संरक्षण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। महिला सुरक्षा से जुड़े सभी केंद्रीय कानूनों को राज्य में लागू किया गया है। लेकिन इन सबके बावजूद भी यदि हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं तो निश्चित तौर पर हमें और भी उपाय किए जाने की आवश्यकता है।
इसके अलावा जातीय हिंसा के मामले भी वर्ष 2018 में 92 से बढ़कर वर्ष 2019 में 163 हो गए हैं। जो राज्य में बढ़ते जातीय संघर्ष की स्थिति को वयां करता है। जातीय भेदभाव सामाजिक समरसता बनाए जाने के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है।जातीय संघर्ष का उन्मूलन किसी कानून से नहीं बल्कि सामाजिक सोच में परिवर्तन लाकर किया जा सकता है। जिसके लिए शैक्षणिक पद्धति में बदलाव, विशेष जागरूकता अभियान व राजनीतिज्ञों की मजबूत इच्छाशक्ति व इस दिशा सरकार की विशेष पहले सकारात्मक बदलाव ला सकती है।
किसी भी क्षेत्र में बढ़ता अपराध समाज वह कानून व्यवस्था के लिए एक खतरा होता है। इसलिए अपराधों को नियंत्रित करना सरकार की एक नैतिक जिम्मेदारी भी होती है।अतः राज्य सरकार को चाहिए कि अपराधिक नियंत्रण तंत्र को और संगठित व मजबूत किया जाए। पुलिस बल के आधुनिकीकरण पर बल दिया जाए साथ ही जांच प्रक्रिया में आधुनिक तकनीकों का समावेश करके, पुलिस को बेहतर प्रशिक्षण के अवसर भी उपलब्ध करवाया जाने के साथ ही शैक्षणिक व्यवस्था में भी कुछ आवश्यक बदलाव लाने से अपराधों को कम किया जा सकता है।
लेखक: लाभ सिंह
Email: [email protected]
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