जनसंख्या बढ़ोतरी पर नियंत्रण आवश्यक

By | July 11, 2020

लेखक – प्रत्यूष शर्मा, हमीरपुर

हर वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस दुनिया भर में बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये मनाया जाता है। पहली बार 11 जुलाई, 1989 को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया था, उस समय विश्व की जनसंख्या लगभग 500 करोड़ थी। आज विश्व की जनसंख्या सात अरब से ज्यादा है और हमारे देश की की जनसंख्या 125 करोड़ से अधिक है। भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। आजादी के समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी, जो आज चार गुना तक बढ़ गई है। अभी भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का लगभग 17.5 प्रतिशत है। क्षेत्रफल के नजरिये से देखें तो हमारे पास विश्व की 2.4 प्रतिशत भूमि है और 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं ।

Image: cassandralegacy

गरीबी,अनपढ़ता, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता की कमी, अंधविश्वास आदि के कारण जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। भारत की पिछले दशक की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत रही है। अगर इसी रफ्तार से आबादी बढ़ती रही तो एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक देश की जनसंख्या 1.6 अरब हो जाएगी। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि 2025 तक भारत चीन को भी पीछे छोड़ देगा और विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।

उच्च जनसंख्या वृद्धि दर के कई कारण हैं जिनमें बढ़ती जन्म-दर और बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण घट रही मृत्यु-दर, गरीबी, संयुक्त परिवार, बाल विवाह, कृषि पर निर्भरता, अशिक्षित समाज, धार्मिक व सामाजिक अंधविश्वास, भ्रामक धारणाएं और स्वास्थ्य के प्रति अवैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि प्रमुख हैं।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा जारी स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन-2019 रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2010 और 2019 के बीच भारत की आबादी लगभग 1.2 प्रतिशत बढ़ी है, जो चीन की वार्षिक वृद्धि दर के दोगुने से अधिक है।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार ने कई जनसंख्या नीतियां, परिवार नियोजन और कल्याण कार्यक्रम शुरू किए हैं और प्रजनन दर में लगातार कमी भी आई है। भारतीय लोग संतान उत्पत्ति को ईश्वरीय वरदान समझते हैं । आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो बढ़ ही रही है, साथ ही साथ कई तरह की आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या को भोजन मुहैया करवाना कराने के लिए यह आवश्यक है कि हमारा खाद्यान्न उत्पादन भी उसी दर से बढ़े जिस दर से जनसंख्या वृद्धि हो रही है।

जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर भार भी बढ़ रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान्न समस्या का सबसे अधिक सामना विकासशील देश कर रहे हैं। हमारे देश की खुशहाली के लिए यह जरूरी है कि जनसंख्या की गति धीमी की जाए। हमने मृत्यु-दर को तो सफलतापूर्वक कम कर दिया है, पर जन्म-दर कम करने में हम उतने सफल नहीं हो पाए हैं । भारत में, प्रति महिला कुल प्रजनन दर वर्ष 1969 के 5.6 से घटकर वर्ष 1994 में 3.7 और वर्ष 2019 में 2.3 हो गई है।

दक्षिण भारतीय राज्यों की प्रजनन दर का संतोषजनक स्तर 1.5 है। नेशनल फेमिली सर्वे 2015-16 के अनुसार उत्तर प्रदेश की प्रजनन दर 2.74 और बिहार की 3.41 है।

हमारे देश के 24 राज्यों में प्रति महिला बच्चों की प्रतिस्थापन प्रजनन दर 2.1 है, यही जनसंख्या वृद्धि पर रोकथाम लगाने पर वांछित परिवार का आकार होना चाहिए।

प्रतिस्थापन स्तर, यह एक ऐसी अवस्था होती है जब जितने  लोग मरते हैं उनका खाली स्थान भरने के लिये उतने ही नए बच्चे पैदा हो जाते हैं। कभी-कभी कुछ जगहों में प्रजनन शक्ति स्तर प्रतिस्थापन दर से नीचा रहता है। आज विश्व में कई ऐसे देश और क्षेत्र हैं जहाँ ऐसी स्थिति है जैसे, जापान, रूस, इटली एवं पूर्वी यूरोप। दूसरी ओर, कुछ समाजों में जनसंख्या वृद्धि दर बहुत ऊँची हो जाती है विशेष रूप से उस स्थिति में, जब वे जनसांख्यिकीय संक्रमण से गुजर रहे होते हैं।

स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन-2019 रिपोर्ट के अनुसार, प्रजनन और यौन अधिकारों की अनुपस्थिति का महिलाओं की शिक्षा, आय एवं सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे वे अपना स्वयं का भविष्य निर्माण करने में असमर्थ हो जाती है और जल्दी विवाह हो जाना भी महिला सशक्तीकरण और बेहतर प्रजनन अधिकारों के संबंध में एक बाधा बना हुआ है।

2001 में हिमाचल की जनसंख्या 60 लाख के करीब थी जो 2011 में 68.64 लाख हो गई, या यूं कहें कि पिछले दशक में हिमाचल में जनसंख्या वृद्धि दर 12.94 प्रतिशत रही।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 में  जनसंख्या को स्थिर करने का लक्ष्य 2045 रखा गया था जो बाद में 2065 कर दिया गया।

देश की बढ़ती जनसंख्या राष्ट्रीय चिंता है। इस पर जन-जागरूकता जरूरी है। शिक्षित और जागरूक परिवार जनसंख्या नियंत्रण के पक्ष में हैं। समृद्ध परिवारों की प्रजनन दर गरीब परिवारों की प्रजनन दर से कम है। जनसामान्य में जागरूकता पैदा करना जरूरी है।

1990 के दशक में मैने बचपन में कई अस्पतालों में परिवार नियोजन से सम्बंधित कई नारे लिखे हुए देखे हैं, जैसे कि, हम दो, हमारे दो, दो ही काफी, बाकी से माफी, और छोटा परिवार, सुखी परिवार, आदि। फिर भी जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। कुछ दिन पहले एक नया नारा कहीं लिखा हुआ पढ़ा मेने- वो नारा था- हम दो, हमारा एक, सुंदर और नेक।

मुझे लगता है अब समय आ गया है कि हम इस  नये नारे का सही तरीके से कार्यान्वयन करें ताकि बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सके। ये शिक्षित और जागरूक समाज के सहयोग से ही सम्भव हो सकता है।

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