सिरमौर सत्याग्रह (Sirmaur Satyagraha):
1920 के बाद सिरमौर में राजनितिक जागृति का उत्थान शुरू हो गया था । ‘चौधरी शेरजंग’ ने पंजाब में हुए क्रांतिकारी गतिविधियों से प्रभावित होकर एक गुप्त संग़ठन का गठन किया । इसी के चलते 1939 में ‘सिरमौर प्रजा मंडल’ का गठन किया गया । इसके प्रमुख नेता श्री चौधरी शेरजंग, शिवानंद रमौल, देविन्द्र सिंह, नहर सिंह, नागिन्द्र सिंह और हरीश चन्द्र थे ।
हालाँकि कुछ समय पश्चात यह संग़ठन अति लोकप्रिय हो गया । इस संगठन ने राजा और राणा तथा ब्रिटिश सरकार के कुशासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू कर दिया । यह बात सरकार को हजम नहीं हो रही थी । इस संग़ठन को खत्म करने के लिए सरकार ने प्रजा मंडल के कार्यकर्ताओं के ऊपर दो मनघडंत आरोप लगा दिए । ये दो आरोप निम्नलिखित है
१) राजा का क़त्ल करने की साजिश रचना,
२) और राजा के क़त्ल के इरादे से उस पर पत्थर फेंकना ।
जिन कार्यकर्ताओं के ऊपर आरोप लगाये गए उनके नाम थे, सर्वश्री दविन्द्र सिंह, हरीश चन्द्र, नहर सिंह, और जगबंधन सिंह ।
सत्र न्यायधीश (डॉ यशवंत सिंह परमार) ने इस षड़यंत्र मामले में अभियुक्तों को मुक्त कर दिया । इस निर्णय से नाराज होकर प्राधिकारियों ने यह मामला विशेष ट्रिब्यूनल के पास भेज दिया, जिसमे अभियुक्तों के आरोप साबित कर दिए गए ।
सत्याग्रह को दबाने के लिए ‘जेहलमी पुलिस’ तैनात की गयी । भारत छोड़ो आंदोलन के आधार पर इस संग़ठन ने भी ‘पझौता आंदोलन‘ (Pajhota Movement) शुरू कर दिया । इसे अक्टूबर 1942 में समूचे सिरमौर ने शुरू कर दिया गया । इसके मुख्य नेता श्री सूरत सिंह वैद (Shri Surat Singh Vaid) और उनकी पत्नी सुनहरी देवी, माथा राम और उनकी पत्नी आत्मा देवी, दया राम, सीता राम शर्मा और शिवा नन्द रमौल आदि थे । वैद सूरत सिंह के साथ जुड़े हुए अन्य लोग थे, गुलाब सिंह, मिआं चु-चु, मेहर सिंह, अत्तर सिंह, जाली, सिंह और मदन सिंह ।
1944 में ‘सिरमौरी एसोसिएशन’ और ‘सिरमौर रियासती प्रजा मंडल’ की स्थापना करके आम जनता के अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की राह अख्ितयार की थी । 1948 में सिरमौर का हिमाचल प्रदेश में विलय करके समस्या का समाधान किया गया ।
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