मंडी षड्यंत्र (1914 -15):
बेगार तथा राजा भवानी सेन और वजीर जीवा नन्द पाधा के उत्पीड़न से तंग आ कर मंडी के लोगों ने सरकाघाट के शोभा राम (Shobha Ram) के नेतृत्व में 1909 में मंडी जन आंदोलन शुरू किया ।
हरदेव राम 1913 में इस आंदोलन का हिस्सा बने । एक और क्रांतिकारी हिरदा राम ने 1914 में इस आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया ।
इसे ग़दर की गूंज, ग़दर सन्देश और ऐलान- ए-जंग के नाम से भी जाना जाता है यदपि ये आंदोलन असफल रहे, परन्तु इसकी चिंगारी बहुत दिनों तक सुलगती रही ।
मियाँ जवाहर सिंह और खैरीगढ़ी की रानी ने आंदोलन के प्रभाव में आकर क्रांतिकारियों की आर्थिक रूप में मदद की ।
इसी के रूप में 8 मार्च 1946 से 10 मार्च 1946 तक मंडी में प्रजा- मंडल कांफ्रेंस हुई, जिसमे 45 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था , जिसकी अद्यक्षता कर्नल जी. एस. ढिलों ने की थी । इसका महत्वपूर्ण उदेस्य सभी पहाड़ी रियासतों के प्रतिनिधियों के निर्वाचित सदस्यों की एक संस्था की निर्माण , जो भावी हिमाचल प्रदेश के निर्माण में नींव का पत्थर साबित हुई ।
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