सुकेत (सुंदरनगर) वर्तमान जिला मंडी का भाग है। प्रख्यात लेखक जे॰ हचिनसन के अनुसार ‘सुकेत’ का नाम ‘सुक्षेत्रा’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘अच्छी भूमि’। ए॰ कनिंघम के अनुसार सुकेत की स्थापना आठवीं ईसवी में हुई थी। सुकेत का प्राचीन नाम ‘पुराना नगर’ था। यह संभावित है कि प्रारम्भ में बंगाल में ‘सेन’ राजवंशी थी जिनके पूर्वज (बीर सेन) ने आठवीं ईसवी में राज किया था, ने सुकेत की स्थापना 765 ईसवी में की। सुकेत और मंडी के राजाओं के पूर्वज चंद्र्वंशी राजपूत वंशावली के है जिनके अवतरण महाभारत में पांडव माने गए हैं। पहाड़ी राज्यों की पुरातन प्रथाओं के अनुसार सुकेत के शाही वंश का नाम ‘सुकेती’ या ‘सुकेतर’ है।
सुकेत रियासत लगभग 420 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था। इसकी सीमाएँ उतर में मंडी, दक्षिण और पश्चिम में बिलासपुर तथा पूर्व में बेहना धारा इसे सराज (कुल्लू) से अलग करती है।
मौजूदा समय में सुकेत का नाम सुंदरनगर है। सुंदरनगर सुकेत रियासत की राजधानी थी। सुकेत रियासत का प्रारंभिक इतिहास इस बात को दर्शाता है कि इस रियासत के राजाओं ने अनेक राजवंशों के राजाओ के साथ युद्ध किये जिनमे प्रमुख कुल्लू राजवंश था। राजा विक्रम सेन के शासन काल में कुल्लू सुकेत के अधीन था। राजा मदन सेन (1240 ईसवी) का शासन काल खुशहाल और लंबा माना गया है जिसे सुकेत का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है। राजा मदन सेन ने पांगणा (उस समय सुकेत की राजधनी) से दो कोस दूर एक किला बनवाया जिसे उन्होने ‘मदनकोट’ का नाम दिया। आजकल इसे मदनगढ़ के नाम से जाना जाता है।
कुल्लू के अभिलेखों के अनुसार सुकेत के राजा मदन सेन ने एक स्थानीय निष्ठावान ‘राणा भोसाल’ को सुकेत की राजकुमारी के साथ शादी करने पर मनाली से बजौरा तक के राज्यक्षेत्र का अनुदान किया। एक रात राजा मदन सेन के सपने में एक देवी प्रकट हुई, देवी ने कहा, अगर तुम इस जगह (पांगणा) का त्याग नहीं करोगे तो तुम्हारे साथ अनहोनि घटित होगी। राजा ने उस जगह एक मंदिर का निर्माण करवाया और तुरंत ही पांगणा का त्याग करने का निर्णय लिया। इसके पश्चात राजा मदन सेन ने ‘लोहारा’ (बल्ह से नजदीक) को सुकेत की राजधनी बनाया।
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गरुड़ सेन (1721 ईसवी) के शासन काल में बनेड़ (इस समय में सुंदरनगर) की स्थापना की गयी तथा बिक्रम सेन के शासन काल में इसे सुकेत की राजधानी बनाया गया। राजा बिक्र्म सेन (1791 ईसवी) की रानी जो की एक बुद्धिमान और योग्य नारी मानी जाती थी, ने सूरज कुंड का निर्माण करवाया। गरुड़ सेन का शासन काल बहुत लंबा माना जाता है, जिनकी मृत्यु 1748 ईसवी में हुई। 1820 ईसवी में ‘विलियम मूरक्राफ्ट’ सुकेत की यात्रा करने वाले प्रथम यूरोपियन थे। राजा उग्र सेन (1836-1876 ईसवी) के शासन काल में सुकेत रियासत को उस समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड मायो की यात्रा (1871 ईसवी में ) का सौभाग्य प्राप्त हुआ। राजा भीम सेन (1908 ईसवी) ने अपने शासन काल में अनेक भवनों एवं सड़कों का निर्माण करवाया जिनमें प्रमुख थे, किंग एडवर्ड हॉस्पिटल, तीन डाक बंगले (बनेड़, सेरी और डेहर) तथा बनेड़ (सुंदरनगर) से मंडी सड़क मार्ग।
राजा लक्ष्मण सेन का शासन काल 1920 ईसवी से शुरू हुआ, जिन्होने अपने अल्पावधि शासन काल में सुकेत के विकास के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमे, लड़कों एवं लड़कियों के लिए प्राथमिक स्कूल खुलवाए गए, हर तहसील में एक वैद की व्यवस्था की गयी तथा कानून व्यवस्था का उचित प्रबंध किया गया ताकि लोगों को पूरा न्याय मिल सके। राजा ने कई नई सड़कें बनवाई तथा पुरानी सड़कों की मुरम्मत कर उन्हे चौड़ा करवाया। अनेक लोक भवन बनाए गए जिनमे प्रमुख थे, लक्ष्मण-भीम क्लब, द प्रिंस ऑफ वेल्स अनाथ आश्रम, मुख्य न्यायलय आदि।
15 अप्रैल 1948 में सुकेत का विलय कर इसे भारत संघ में मिला लिया गया। दो रियासतों ‘सुकेत’ और ‘मंडी’ का विलय कर जिला मंडी की गठन किया गया।
सुकेत रियासत में अनेक त्योहार मनाए जाते है एवं मेले आयोजित किए जाते है जिनमे प्रमुख है नलवाड़ी मेला। नलवाड़ी मेला की कल्पना डब्ल्यू॰ गोल्डस्टेन द्वारा 1889 ईस्वी में की गयी थी। सुकेत रियासत कालीन भूगोल की पुस्तक के अनुसार राजा बिक्रम सेन (1791-1838) के शासन काल में नालवाड़ी मेले का आरंभ हुआ था। जिसे मौजूदा समय में राज्यस्तरीय मेले का दर्जा प्राप्त है।
स्त्रोत: गैजेटियर ऑफ सुकेत स्टेट 1927
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